तेज बारिश से सिमरोल बस्ती में घुटनों तक पानी भरने से पुलिस और प्रशासन ने इंदौर-खंडवा मार्ग पर बनी पुलिया को तोड़ दिया। इससे बारिश का पानी तो निकल जाएगा, लेकिन इंदौर से खंडवा आने-जाने वाले लोगों की परेशानी बढ़ गई है।
इंदौर-खंडवा रुट पर यातायात को डायवर्ट कर दिया गया है।
छोटे वाहन व यात्री बसों को दतोदा, मेमदी, तलाई नाका होकर जाना होगा
भारी वाहन 90 किलोमीटर घूमकर खलघाट होकर खंडवा-खरगोन जाएंगे
अधिकारियों का मुताबिक, पुलिया निर्माण में 8 से 10 दिन का समय लगेगा
(Indore Khandwa Road)। सिमरोल क्षेत्र में तेज बारिश के कारण बस्ती में भरे पानी को निकालने के लिए इंदौर-खंडवा मार्ग पर बनी पुलिया को तोड़ दिया गया। इसके चलते इंदौर-खंडवा के बीच आने-जाने वाले छोटे वाहनों और बसों को चार किमी घूमकर जाना होगा।
इसी तरह. भारी वाहन तेजाजी नगर, राऊ, खलघाट होकर खरगोन-खंडवा की ओर जा सकेंगे। यह बदलाव आगामी आठ दिनों तक रहेगा। पुलिस के अनुसार, सिमरोल में पुलिया निर्माण में तकरीबन 8 से 10 दिन का समय लगेगा। तब तक इसी मार्ग का उपयोग किया जाएगा।
इस दौरान भारी वाहन 90 किमी घूमकर तेजाजी नगर से राऊ चौराहे होते हुए मानपुर, खलघाट होकर खंडवा-खरगोन आ-जा सकेंगे। छोटे वाहन और बसों को खंडवा की ओर चार किमी घूमकर जाना होगा। तेजाजी नगर से नो मिल के पास से दतोदा, मेमदी गांव पहुंचना होगा। यहां महू-सिमरोल मार्ग से तलाई नाका होकर खंडवा की ओर जाना होगा।
इंदौर-खंडवा राजमार्ग पर अब सड़क के लिए राजस्व भूमि से कटे पेड़
इस बीच, 216 किमी लंबे इंदौर-खंडवा राजमार्ग को पूरा करने की समय-सीमा नजदीक आ चुकी है। निर्माण एजेंसी ने डेडलाइन में कार्य पूरा करने में लगी है। तेजी से कार्य कर रही है। वनभूमि के बाद अब सड़क के लिए राजस्व भूमि से मार्ग निकाल रहे हैं।
सिमरोल-दतोदा, ग्वालु सहित अन्य स्थानों से बाधक पेड़ों को काटना शुरू कर दिया है। वर्षों पुराने पेड़ों को प्रत्यारोपित करने पर कोई ध्यान देने को तैयार नहीं है।
इंदौर-खंडवा राजमार्ग को जनवरी 2025 तक पूरा किया जाना है। इन दिनों 30-35 फीसद काम बाकी है। तलाई और बाईग्राम में बनने वाली तीनों सुरंग का काम अंतिम चरणों में पहुंच चुका है, लेकिन इन सुरंगों तक पहुंचने वाला मार्ग बनाया जा रहा है।
जंगल से होते हुए सड़क राजस्व भूमि से गुजरेगी। इसके लिए बाधक पेड़ों को काटा जा रहा है। करीब 30 से 40 पेड़ काटे गए हैं। इनमें से कुछ पेड़ों को प्रत्यारोपित कर बचाया जा सकता था।
पंद्रह हजार रुपये आता है खर्च
पूर्व वन अधिकारी व पर्यावरणविद अशोक खराटे के अनुसार, कुछ चुनिंदा प्रजातियों के पेड़ों को प्रत्यारोपित किया जा सकता है। इसके लिए पेड़ की छंटाई करते हैं। फिर केमिकल का छिड़काव किया जाता है। पेड़ की जड़ को सावधानीपूर्वक निकालते हैं।
फिर मशीन से पेड़ को ट्रैक्टर व ट्रक पर लोड कर अन्य स्थान पर लेकर जाते हैं। पूरी प्रक्रिया में पंद्रह हजार खर्च आता है। इसे बचने के लिए बेहद कम एजेंसी प्रत्यारोपित करवाती है। वैसे पेड़ को दोबारा लगाने के लिए भी जमीन की आवश्यकता होती है।
प्रत्यारोपण को लेकर स्पष्ट निर्देश नहीं
प्रोजेक्ट काफी पहले तैयार किया गया है। उस दौरान प्रत्यारोपित करने के बारे में स्पष्ट निर्देश नहीं थे। वैसे पेड़ों को बचाने के बारे में विचार किया जा रहा है। इस संबंध में वरिष्ठ अधिकारियों से चर्चा करेंगे। -सुमेश बांझल, प्रोजेक्ट डायरेक्टर, एनएचएआई