Thursday, September 19, 2024
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भगवान श्री राम की परीक्षा लेना चाहती थीं माता सती, शिव जी ने नाराज होकर कर दिया था देवी का त्याग

माता सती और बाद में उनके ही दूसरे रूप माता पार्वती ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कड़ी तपस्या की थी। माता सती की एक गलती के कारण उन्हें शिव जी ने पत्नी रूप में स्वीकार करने से मना कर दिया था। इसके बाद उन्होंने माता पार्वती के रूप में दूसरा स्वरूप लिया था।

माता पार्वती, माता सती का ही स्वरूप मानी जाती हैं।

देवी सती ने नहीं मानी थी भगवान शिव की बात।

देवी सती के झूठ बोलने पर नाराज हो गए थे शिव जी।

इस समय सावन का महीना चल रहा है। सावन का महीना भगवान शिव और देवी पार्वती को समर्पित होता है। कहा जाता है कि इसी महीने में देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या की थी। माता पार्वती, भगवान शिव की दूसरी पत्नी हैं।

भगवान शिव की पहली पत्नी माता सती थीं। माता पार्वती, माता सती का ही स्वरूप मानी जाती हैं, लेकिन माता सती की एक गलती के कारण भगवान शिव ने उनका पत्नी के रूप में त्याग कर दिया था। उस समय वे दुखी होकर यज्ञ की अग्नि में समा गई थीं और अपनी देह का त्याग कर दिया था।

तुलसीदास जी ने किया है वर्णन

बाद में माता पार्वती ने घोर तपस्या की और भगवान शिव को फिर से पति रूप में प्राप्त किया। इस तरह मां पार्वती के रूप में देवी सती ने जन्म लिया। आइए जानते हैं कि इसके पीछे की क्या वजह थी। आखिर क्यों भगवान शिव को माता सती का त्याग करना पड़ा था। इसका वर्णन रामचरितमानस ग्रंथ में गोस्वामी तुलसीदास जी ने किया है।

एक बार भगवान शिव को रामकथा सुनने की इच्छा हुई। तब राम कथा सुनने की इच्छा से भगवान शिव, माता सती के साथ कुम्भज ऋषि के आश्रम पहुंचे और ऋषि से राम कथा सुनने की इच्छा व्यक्त की। तब ऋषि ने भगवान शिव और माता सती को प्रणाम किया और राम कथा सुनाना शुरू किया।

भगवान शिव ने क्यों किया देवी सती का त्याग?

भगवान शिव ने बड़े भाव से रामकथा सुनी। कथा सुनने के बाद भगवान शिव, भगवान श्री राम की भक्ति के आनंद में डूब गए। वे माता सती के साथ वन की ओर लौट रहे थे तभी उन्होंने देखा कि वहां भगवान श्री राम अपनी पत्नी से अलग होकर अपने भाई लक्ष्मण के साथ माता सीता की खोज में भटक रहे थे।

वहां भगवान शिव ने श्रीराम को आदरपूर्वक प्रणाम किया। यह देखकर माता सती के मन में संदेह उत्पन्न हो गया। वह सोचने लगीं कि जिन भगवान शिव को सभी प्रणाम करते हैं, वे एक साधारण राजकुमार को क्यों प्रणाम करेंगे, जो स्वयं अपनी पत्नी के वियोग से दुखी और व्याकुल है।

सती ने धारण किया सीता का रूप

इस संदेह को दूर करने के लिए उन्होंने भगवान शिव से सवाल किया। शिव जी ने माता सती को समझाया कि यह कोई साधारण राजकुमार नहीं हैं, बल्कि स्वयं भगवान राम हैं, जिनकी कहानी उन्होंने अभी-अभी सुनी है। यह सब भगवान श्री राम की ही लीला है।

इसके बावजूद माता सती भगवान शिव की बातों से संतुष्ट नहीं हुईं। माता सती को इसे स्वीकार करने में संदेह हुआ, उन्होंने भगवान श्री राम की परीक्षा लेने का निर्णय लिया। भगवान शिव ने माता सती को ऐसा करने से रोका, लेकिन वे नहीं मानीं।

देवी सती ने माता सीता का रूप धारण किया और उसी स्थान पर बैठ गईं, जहां से श्री राम और लक्ष्मण आए थे। जैसे ही श्री राम ने माता सती को सीता के रूप में देखा, उन्होंने माता सती को प्रणाम किया और पूछा, “माता, आप वन में अकेली क्या कर रही हैं? महादेव कहां हैं?”

भगवान शिव से कहा झूठ

श्री राम की यह बात सुनकर माता सती समझ गईं कि राम वास्तव में भगवान विष्णु के अवतार हैं। उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और वे भगवान शिव के पास लौट आईं। जब शिवजी ने माता सती से पूछा कि वहां क्या हुआ है, तो माता सती ने झूठ बोल दिया कि कुछ नहीं हुआ है, वे सिर्फ भगवान श्रीराम को प्रणाम करके लौटी हैं। भगवान शिव उनके इस झूठ को समझ गए और पूरी घटना जानकर बहुत दुखी हुए।

अग्नि में समा गई थीं देवी सती

देवी सती ने अपने आदर्श श्री राम की पत्नी माता सीता का रूप धारण किया था, इसलिए भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करने में असमर्थता व्यक्त की और मानसिक और शारीरिक रूप से माता सती को त्याग दिया।

सती को अपनी गलती का एहसास हुआ, वह जानती थीं कि अब महादेव उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार नहीं करेंगे। तब माता सती ने अपना शरीर त्यागने का निर्णय लिया। इसीलिए वे बिना बुलाए अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ में चली गईं और वहीं यज्ञ की अग्नि में खुद को समाकर अपना शरीर त्याग दिया।

SourceNaidunia
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